एक बार वे दोनों बाजार में मिल गए। अपने-अपने चेलों की मौजूदगी में वे वहीं पर देवताओं के होने और न होने पर तर्क-वितर्क करते भिड़ गए। घंटों बहस के बाद वे अलग हुए।
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उस शाम नास्तिक मन्दिर में गया। उसने अपने आपको पूजा की वेदी के आगे दण्डवत डाल दिया और देवताओं से अपनी पिछली सभी भूलों के लिए क्षमा माँगी।
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और उसी दौरान, दूसरा विद्वान जो आस्तिक था, उसने अपने सारे धर्मग्रंथ जला डाले। वह पक्का नास्तिक बन चुका था।।
-:-खलील जिब्रान-:-
-:-खलील जिब्रान-:-
चलता रहूँगा पथ पर,
चलने में माहिर बन जाऊंगा !!
या तो मंजिल मिल जाएगी,
या
अच्छा मुसाफ़िर बन जाऊंगा !!
चलने में माहिर बन जाऊंगा !!
या तो मंजिल मिल जाएगी,
या
अच्छा मुसाफ़िर बन जाऊंगा !!
जीत निश्चित हो तो कायर भी लड़ सकते हैं,बहादुर वे कहलाते हैं,
जो हार निश्चित हो,फिर भी मैदान नहीं छोड़ते…
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